Friday, June 17, 2011

vidai

vidai

by Bjram Araj on Friday, February 18, 2011 at 10:16pm

रास न आती जुदाई

फिर भी ये दस्तूर है

कौन समझाए इसे

ये दिल बडा मजबूर है....

वक्त के सागीर्द हम सब

ये बडा अनमोल है

जिन्दगी के हर कदम पर

इसका न कोइ मोल है

देती रहती है ये दस्तक

हर नये अन्जाम को

जिसने पहचाना इसे

उसकी न मन्जिल दूर है.........रास न आती जुदाई

सपने सच करता समय

दिखलाता नई राह भी

दूर अन्धियारे को कर

उपजाता नई चाह भी

समय की अवहेलना

करता अभागा ही यहा

वक्त है ओ मणि कि जिसका

पथ पे फैला नूर है..........रास न आती जुदाई

वक्त के फूलो से अब

जीवन सवारा किजीए

हर घडी की आरती

ख्श्रम से उतारा किजीए

आदमी को है बनाता

औ’ मिटाता वक्त ही

कद्र जो करता नही है

वक्त का मगरूर है..........रास न आती जुदाई

गम मे खुशी मे, हमने तुमसे

मुह कभी मोडा नही

भाग्य उज्जव्ल हो तुम्हारा

कसर कुछ छोडा नही

है भरी आखे हमारी

इस विदाई की घडी मे

पर खुशी है तुममे से

दिल से न कोई दूर है..........रास न आती जुदाई....फिर भी ये दस्तूर है...


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